तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
कलनी सी गति यारी देखो, राजा के घर जन्म लिया
पुनर्जन्म के गायियों के घोड़ी रूप में मिले पिया
तरह तरह के संकट झेले पत्नी धर्म निभाने को
पत्नी धर्म निभाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
गिरिनार गिरी दे नैमनाथ ने आत्म ध्यान लगाया था
पुण्य भूमि है इसलिए यहां मोक्ष परम पद पाया था
मन और तन से शीश नवा के आठों कर्म मिटाने को
आठों कर्म मिटाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
मांग चुनी का ऊँचा पर्वत सब के मन को भाया हे
थोड़ा थोड़ी मुनियों ने यहां केवल ज्ञान उपाया है
सोनगिरी से बनी है मिथिया मोक्ष मार्ग दर्शाने को
मोक्ष मार्ग दर्शाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
पैरों में छाले पड़ जाते तन की सुध बुध नाही करे
दुखों की चिंता न करती मन में शंका भाव धरे
हस्तिनापुर के दर्शन करके मन की व्यथा मिटाने को
मन की व्यथा मिटाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
प्रथम की सुनकर ऋषिवनाथ ने अयोध्या में जन्म लिया
केवल ज्ञान उपाकर के श्री जग में धर्म प्रचार किया
इन्द्र और इन्द्राणी आए प्रभु का जन्म मनाने को
प्रभु का जन्म मनाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
कड कडाती सर्दी में कैलाश गिरी पे भाव धारा
ऋषिवनाथ के कन कन में छेपुरी में वास करा
धन्य धन्य भारत नारी का जग को यही दिखाने को
जग को यही दिखाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
पंच पहाड़ी पर्वत देखो बहुजनों का मन हरता
जन्म जन्म के पाप कर्म को दर्शन के क्षण में हरता
दूर दूर से शाव के आते पुण्य कर्म बढ़ाने को
पुण्य कर्म बढ़ाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
बाबापुर की पुण्य भूमि में यहां महावीर ने बाण लिया
चंपापुर से वशपुच्छ ने अश्व कर्म का नाश किया
निर्माण भूमि में करने को पहुंची पति को दर्शन कराने को
पति को दरस कराने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती
जन्मेद शिखर का पर्वत देखो बाब्यापाप कर्म खोये
एक बार बंदन करने से नरक पशु गति न होये
बीच गिरी सर कारी तपस्या मुक्तिपद के पाने को
मुक्ति पद के पाने को
तीर्थ करने चली सती निजि पति का दुष्ट मिटाने को
अशुभ कर्म का उदय हुआ है कर्म में बंद छुड़ाने को
तीर्थ करने चली सती