वो हँस के मिले हमसे
हम प्यार समझ बैठे
बेकार ही उल्फ़त का
इजहार समझ बैठे
वो हँस के मिले हमसे
हम प्यार समझ बैठे
ऐसी तो न थी किस्मत
अपना भी कोई होता
ऐसी तो न थी किस्मत
अपना भी कोई होता
अपना भी कोई होता
क्यों खुद को मोहब्बत का
हकदार समझ बैठे
वो हँस के मिले हमसे
हम प्यार समझ बैठे
रोये तो भला कैसे
खोले तो जुबान क्यों कर
रोये तो भला कैसे
खोले तो जुबान क्यों कर
खोले तो जुबान क्यों कर
डर ते है के जाने क्या
संसार समझ बैठे
बेकार ही उल्फ़त का
इजहार समझ बैठे
वो हँस के मिले हमसे
हम प्यार समझ बैठे