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Mere Sapane Me [Storytelling] Video (MV)




Performed By: Gitesh Sharma
Length: 7:39
Written by: Gitesh Sharma




Gitesh Sharma - Mere Sapane Me [Storytelling] Lyrics




दो दोस्त प्रभात और कुमार ने मिलकर एक कंपनी खोलें जिसमें यह दोनों मिलकर आयात और निर्यात करते थे जिसके कारण ज्यादातर समय यह दोनों एक दूसरे से दूर और अलग अलग शहर में रहते थे ऐसा नहीं कि दोनों में लगा नहीं था। यह महीने में एक सप्ताह साथ ही रहते थे। दोनों एक साथ मस्तीे और पार्टी करते थे, कुमार मस्त मौला लड़का था हमेशा मस्ती में रहता था। काम तो ऐसे करता था,मानो काम कोई खेल हो। प्रभात अच्छा था बात की गंभीरता को समझता था और काम का सबसे ज्यादा जोर प्रभात के पास ही होता था। कोई भी डील साइन करनी हो या फिर कोई प्रोजेक्ट लेना हो तो प्रभाव ही करता था। बाकी काम पूरा करना या ना करना कैसे करना यह कुमार संभालता था। समय बीतता गया और बिजनेस बढ़ता गया। कुमार को दिल्ली पसंद थी बताना उससे क्या लगाओ था दिल्ली से। जब भी कोई दिल्ली से प्रोजेक्ट आता था कुमार सबसे पहले उस में हाथ डालता था कि यह मैं करूंगा। ऐसा ही एक प्रोजेक्ट दिल्ली से आया हुआ था काम यह था कि कुछ कॉन्फिडेंसल डॉक्यूमेंट और कुछ बॉक्स दिल्ली पहुंचाना है। सुबह 10:00 बजे कुमार ने लखनऊ से निकला और लखनऊ आगरा एक्सप्रेसवे पकड़ के दिल्ली जाने वाला था। गाड़ी में किशोर दा के "मुसाफिर हूं यारों ना घर है ना ठिकाना" गाना बज रहा था। शाम या रात को यात्रा करना बहुत दिक्कत वाली बात होती है, पर साहब पता नहीं क्या सूझा की हां कर बैठे काम करने के लिए। पिछले महीने जब यह दिल्ली गए थे, तो इन्हें एक गर्लफ्रेंड मिली। ये सब बाते कुमार जी सोच रहे थे। घड़ी में देखा तो शाम के 5:30 हो रहे थे तभी कुछ हथियारबंद डाकुओं ने चारों ओर से कुमार के गाड़ी को घेर लिया। और कुमार से उस कागजात और बॉक्स मांगने लगे। कुमार देने से मना कर दिया। तब एक डाकु कुमार का सर्ट पकड़ कर धमकी दे ही रहा था कि तब तक दुसरे ने उसे गोली मार दी। यह देखते ही प्रभात चिल्लाने लगा उसे छोड़ दो, मत मारे, भगवान से डरो। तभी कुमार ने दरवाजे पर बेल बजाई और बोला प्रभात दरवाजा खोलो। प्रभात अचानक से उठ गया, तब पता चला की वह सपने मे था और उसने कुमार को गले लगाया।
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दो दोस्त प्रभात और कुमार ने मिलकर एक कंपनी खोलें जिसमें यह दोनों मिलकर आयात और निर्यात करते थे जिसके कारण ज्यादातर समय यह दोनों एक दूसरे से दूर और अलग अलग शहर में रहते थे ऐसा नहीं कि दोनों में लगा नहीं था। यह महीने में एक सप्ताह साथ ही रहते थे। दोनों एक साथ मस्तीे और पार्टी करते थे, कुमार मस्त मौला लड़का था हमेशा मस्ती में रहता था। काम तो ऐसे करता था,मानो काम कोई खेल हो। प्रभात अच्छा था बात की गंभीरता को समझता था और काम का सबसे ज्यादा जोर प्रभात के पास ही होता था। कोई भी डील साइन करनी हो या फिर कोई प्रोजेक्ट लेना हो तो प्रभाव ही करता था। बाकी काम पूरा करना या ना करना कैसे करना यह कुमार संभालता था। समय बीतता गया और बिजनेस बढ़ता गया। कुमार को दिल्ली पसंद थी बताना उससे क्या लगाओ था दिल्ली से। जब भी कोई दिल्ली से प्रोजेक्ट आता था कुमार सबसे पहले उस में हाथ डालता था कि यह मैं करूंगा। ऐसा ही एक प्रोजेक्ट दिल्ली से आया हुआ था काम यह था कि कुछ कॉन्फिडेंसल डॉक्यूमेंट और कुछ बॉक्स दिल्ली पहुंचाना है। सुबह 10:00 बजे कुमार ने लखनऊ से निकला और लखनऊ आगरा एक्सप्रेसवे पकड़ के दिल्ली जाने वाला था। गाड़ी में किशोर दा के "मुसाफिर हूं यारों ना घर है ना ठिकाना" गाना बज रहा था। शाम या रात को यात्रा करना बहुत दिक्कत वाली बात होती है, पर साहब पता नहीं क्या सूझा की हां कर बैठे काम करने के लिए। पिछले महीने जब यह दिल्ली गए थे, तो इन्हें एक गर्लफ्रेंड मिली। ये सब बाते कुमार जी सोच रहे थे। घड़ी में देखा तो शाम के 5:30 हो रहे थे तभी कुछ हथियारबंद डाकुओं ने चारों ओर से कुमार के गाड़ी को घेर लिया। और कुमार से उस कागजात और बॉक्स मांगने लगे। कुमार देने से मना कर दिया। तब एक डाकु कुमार का सर्ट पकड़ कर धमकी दे ही रहा था कि तब तक दुसरे ने उसे गोली मार दी। यह देखते ही प्रभात चिल्लाने लगा उसे छोड़ दो, मत मारे, भगवान से डरो। तभी कुमार ने दरवाजे पर बेल बजाई और बोला प्रभात दरवाजा खोलो। प्रभात अचानक से उठ गया, तब पता चला की वह सपने मे था और उसने कुमार को गले लगाया।
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Writer: Gitesh Sharma
Copyright: Lyrics © Sharmaji Technology Media


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