यह दरया और नदी भी मिलते हैं कहीं
पर रूह जो मेरी माने अक़ल कहती है नही
खामोशियों में भी अक्सर हैं बातें छुपी
पर यह तो वो ही जाने
जो कुछ भी कहता नही
सोच सोच के थक गया हूँ मैं खोने दो मुझे ओ हो
सोच सोच के थक गया हूँ मैं सोने दो मुझे
यह दरया और नदी भी मिलते हैं कहीं
पर रूह जो मेरी माने अक़ल कहती है नही
यह आबर और घटा बरस जाए गी कहीं
जब होगी रोशनी तो होगी जन्नत वहीं
सोच सोच के थक गया हूँ मैं खोने दो मुझे ओ हो
सोच सोच के थक गया हूँ मैं सोने दो मुझे
खोने दो
खोने दो
खोने दो
खोने दो मुझे
खोने दो मुझे
सोने दो
सोच सोच के थक गया हूँ मैं सोने दो मुझे