वक़्त के समंदर का कोई
तल नहीं न कोई किनारा
वक़्त के समंदर का कोई
तल नहीं न कोई किनारा
इस बेह्ते वक़्त की धारा पर (धारा पर)
सवार है ये ज़िन्दगी
तूफ़ानो आँधियो और भावर में
कागज़ की नाव भी खिलेगी (कागज़ की नाव भी खिलेगी)
फिर क्यों इन लहरों से हम लड़ते रहे
फिर क्यों फ़िज़ाओं से यूँ डरते रहे
कितनी हसीं हो ज़िन्दगी अगर
जी लें हम धारा के संग
कितना हसीं हो ये सफ़र अगर
जी लें हम बे फिकर