सेहमी है मेरी ज़मीन
सहमा है आस्मां
सरफिरों की इस जंग में
जल रहा मेरा जहां
कब तक डरते रहे
कब तक सहते रहे
कब तक जलते रहे
कब तक उठेगा ये धुंआ
तुम और मैं
हम दोनों ही तो इंसान हैं
एक ही मिटटी की
कोख से उपजे हैं हम
क्यों हैं ये फासले
क्यों हैं ये दूरियां
कहने को हम आज़ाद हैं (कहने को हम आज़ाद हैं)
फिर भी क्यों हैं ये बेड़ियां
कब तक डरते रहे
कब तक सहते रहे
कब तक जलते रहे
कब तक उठेगा ये धुंआ