सुबह की ये रौशनी
मुझसे ये है कह रही
क्यों तेरी इन आँखों में है नमी
गुमसुम सा क्यों रहता है
जाने किस ख़याल में
खोया सा तू रहता है अतीत में
कहाँ चली गयी तेरी रोशनी
कहाँ चली गयी तेरी सादगी
कहाँ चली गयी सौंधी सी वो हंसी
कहाँ चली गयी तेरी नादानगी
हम्म हा हम्म हा हम्म हा हम्म हा
शाम की तन्हाईयाँ
मुझसे ये हैं कह रहीं
छोड़ दे इन आंसुओं को
नयी ज़िंदगी
इस दिल के हर दर्द को
माथे की इस शिकंज को
भुला दे हर दर्द को
हर ज़ख्म को
बहने दे दिल के हर जज़्बात को
जगा दे सोई सी उमंग को
बहकने दिल के संगीत को
चेहेकने दे दिल की आवाज़ को
हम्म हा हम्म हा हम्म हा हम्म हा