गिरती जाती है दिन प्रतिदिन प्रनयणी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदिन सुभगे मेरा तन प्याला
रूठ रहा है
रूठ रहा है मुझसे रूपसि, दिन दिन यौवन का साक़ी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला
मेरी जीवन मधुशाला