थी शुभ सुहाग की रात मधुर
मधु छलक रहा था कण कण मे
सपने जगते थे नैनो मे अरमान मचलते थे मन मे
सरदार मगन मन झूम रहा
पल पल हर अंग फड़कता था
होठों पर प्यास महकती थी
प्राणो मे प्यार धड़कता था
तब ही घूँघट मे मुस्काती
तब ही घूँघट मे मुस्काती पग पायल छम छम छमकाती
रानी अंतःपुर मे आई कुछ सकुचाती कुछ शर्माती
मेंहदी से हाथ रचे दोनो
माथे पर कुमकुम का टीका
गोरा मुखड़ा मुस्का दे तो
पूनम का चाँद लगे फीका
धीरे से बढ़ चूडावत ने
धीरे से बढ़ चूडावत ने रानी का घूँघट पट खोला
नस नस मे सौंध गयी बिजली पीपल पत्ते सा तन डोला
अधरों से अधर मिले जब तक लज्जा के टूटे छंद बंद
रन बिगुल द्वार पर गूँज उठा
रन बिगुल द्वार पर गूँज उठा
शहनाई का स्वर हुआ मंद
भुज बंधन भुला आलिंगन
आलिंगन भूल गया चुम्बन
चुम्बन को भूल गयी साँसें
सांसो को भूल गयी धड़कन
सजकर सुहाग की सेज सजी
सजकर सुहाग की सेज सजी
बोला ना युद्ध को जाऊँगा
तेरी कजरारी अलकों मे
मन मोती आज बिठाऊंगा
पहले तो रानी रही मौन
फिर ज्वल ज्वल सी भड़क उठी
बिन बदल बिन बरखा मानो
क्या बिजली कोई तड़प उठी
घायल नागन सी भौह तान घूँघट उखाड़कर यूँ बोली
तलवार मुझे दे दो अपनी तुम पहन रहो चूड़ी चोली
पिंजड़े मे कोई बंद शेर
पिंजड़े मे कोई बंद शेर सहसा सोते से जाग उठे
या आँधी अंदर साथ लिए जैसे पहाड़ से आग उठे
हो गया खड़ा तन कर राणा हाथों मे भाला उठा लिया
हर हर बम बम बम महादेव
हर हर बम बम बम महादेव
कह कर रन को प्रस्थान किया
देखा पति का जब वीर वेश
पहले तो रानी हर्षाई फिर सहमी झिझकी अकुलाई
आँखों मे बदली घिर आई
पागल सी गयी झरोखे पर
पागल सी गयी झरोखे पर परकटी हंसिनी थी अधीर
घोड़े पर चढ़ा दिखा राणा
जैसे कमान पर चढ़ा तीर दोनो की आँखें हुई चार
चूडावत फिर सुधबुध खोई
संदेश पटाकर रानी को मँगवाया प्रेमचिन्ह कोई
सेवक जा पहुँचा महलों मे रानी से माँगी सेनानी
रानी झिझकी फिर चीख उठी बोली कह दे मर गई रानी
ले खड़ग हाथ फिर कहा ठहर
ले सेनानी ले सेनानी अंबार बोला ले सेनानी
धरती बोली ले सेनानी
रख कर चाँदी की तली मे सेवक भगा ले सेनानी
राणा अधीर बोला बढ़कर ला ला ला ला ला सेनानी
कपड़ा जब मगर हटाया तो
रह गया खड़ा मूरात बनकर लहूलुहान रानी का सिर
हँसता था रखा थाली पर
सरदार देख चीख कार उठा
हा रानी हा मेरी रानी अद्भुत है तेरी कुर्बानी
तू सचमुच ही है क्षत्राणी
फिर एड लगाई घोड़े पर
धराती बोली जय हो जय हो
हारी रानी तेरी जय हो ओ भरात मा तेरी जय हो