ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से, मेरे महबूब
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिये तश्हीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से, मेरे महबूब
ये चमनज़ार, ये जमना का किनारा, ये महल
ये चमनज़ार, ये जमना का किनारा, ये महल
ये मुनक्कश दर-ओ-दीवार, ये मेहराब, ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरे महबूब, मेरे महबूब
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से, मेरे महबूब