सुबह छुपी रोशिनी
की तरह
फ़िक्र कुछ इस तरह
धुएं से घिरी मेरी
खुद की सजा कैदी हुआ
हवा कभी यहाँ कभी वहाँ
हार अब एक डर की तरह
ना इसमें कोई वजह
हाल अब ये है रोज़ का
पर दिल ये मजबूर सा
ज़िद्द कर के ये कहता
कभी कभी वक़्त बुरा भी तोह होगा
तभी सभी सांसें भारी सी होगी
पानी पानी उम्मीदें कभी तो
इधर उधर फिरति पार भी होंगी
बनू मै बनू मै बनू मै बेपरवाह
आज जो कहा था शब्दों में ही बह गया
ऐसा माना क्या जो खुद में तू रह गया
सही में थे जो इरादे
वो लिहाज़ में छिप जाते
कभी तो बिना सोचे कहुं ज़रा
बनू मै बनू मै बनू मै बेपरवाह
कभी कभी वक़्त बुरा भी तोह होगा
तभी सभी सांसें भारी सी होगी
पानी पानी उम्मीदें कभी तो
इधर उधर फिरति पार भी होंगी
कभी कभी वक़्त बुरा भी तोह होगा
तभी सभी सांसें भारी सी होगी
पानी पानी उम्मीदें कभी तो
इधर उधर फिरति पार भी होंगी
बनू मै बनू मै बनू मै बनू मै
बनू मै बनू मै बेपरवाह