तू आगाज़ है रात की
या सुबह की तू है रौशनी
आँखों में था चेहरा तेरा
जाने न कब से बसा
दिल को करे क्यों गुमराह
ये क्या साज़िशें हैं भला
तू आगाज़ है रात की
या सुबह की तू है रौशनी
शामो सी क्यूँ है बता
तू आधी अधूरी रही
ओ अन्जानी ई ई ई ओ अन्जानी ई ई ई वो वो वो वो
वो वो वो वो
ये कैसा नशा है मुझपे खुदा
क्यों तू ही दिखे हर जगह
फिर खुद से जुड़ा एक अरसा हुआ
खुदी में न मेरे निशान
तू आगाज़ है रात की
या सुबह की तू है रौशनी
शामो सी क्यूँ है बता
तू आधी अधूरी रही
ओ अन्जानी ई ई ई ओ अन्जानी ई ई ई
ओ अन्जानी
आँखों में था चेहरा तेरा
जाने न कब से बसा
दिल को करे क्यों गुमराह
ये क्या साज़िशें हैं भला
तू आगाज़ है रात की
सुबह की तू है रौशनी
शामो सी क्यूँ है बता
तू आधी अधूरी रही
ओ अन्जानी ई ई ई ओ अन्जानी ई ई ई
ओ अन्जानी