ज़ालिम सी ये ज़िन्दगी
लकीरों से क्यों है बँधी
जाने किस फ़िराक
में जूंझते हैं सभी
लम्बी सी इन कतारों में
कैदी है हम सभी
बेरहम से इन हाथों की
कटपुतली है ज़िन्दगी
ज़ालिम सी सर पे खड़ी
बेदर्द सी है ये घडी
काटों के इशारों की
मोहताज है ये ज़िन्दगी
माया के इस जाल के
कैदी हैं हम सभी
इन दलदलों में यूँ
घुट रही ज़िन्दगी
कहाँ चली गयी ये ज़िन्दगी
कहाँ चली गयी ये ज़िन्दगी
कहाँ चली गयी ये ज़िन्दगी
कहाँ चली गयी ये ज़िन्दगी